विषय सूची
- 1. संथाल जनजाति
- 2. उरांव जनजाति
- 3. मुंडा जनजाति
- 4. हो जनजाति
1. संथाल जनजाति :-
- संथाल जनजाति झारखण्ड की सर्वाधिक जनसँख्या वाली जनजाति हैं।
- यह भारत की तीसरी सर्वाधिक जनसँख्या (पहला - गोड़ ,दूसरा -भील ) वाली जनजाति है जो चीन में भी पायी जाती है।
- संथाल जनजाति मुख्य रूप से झारखण्ड राज्य के संथाल परगना प्रमंडल और हज़ारीबाग ,गिरिडीह ,धनबाद ,चतरा ,कोडरमा ,सिंघभूम समेत पुरे झारखण्ड में निवास करते है।
- प्रजातीय दृस्टि से इन्हे प्रोटो ऑस्ट्रोलॉइड श्रेणी में रखा जाता है।
- संथाल जनजातियों की अपनी अलग भाषा है जिसे संथाली भाषा कहा जाता है और इनकी लिपि को ओलचिकी लिपि कहा जाता है।
- संथाल जनजाति 12 गोत्र में बटी है जो मुर्मू ,हंसदा ,सोरेन ,हेम्ब्रम ,किस्कू ,बास्के ,बेसरा ,पोरिया ,टुण्डु ,गेंदुवार , चोड़े और मरांडी है।
सामाजिक जीवन :-
संथाल जनजाति सुव्यवस्थित गांव में रहता है संथाल जनजाति में गांव का प्रधान मांझी होता है गांव में सभी पूजा- पाठ सम्बन्धी कार्य को मांझी पूरा करता है। संथाल जनजाति में समाज युवा गृह को घोटुल नाम से सम्बोधित करता है तथा विवाह को बापल और वधु मूल्य को पोन कहा जाता है। संथालो के पंचायत में हत्या से सम्बंधित मामले को छोड़ कर बाकि सभी मामलो में फैसला सुनाया जाता है झगड़ो के निर्णय में विचार -विमर्श के लिए कुछ वरिष्ठ व्यक्ति होते है जिन्हे भगदो प्रजा कहा जाता है इस पंचायत में आर्थिक तथा शारारिक दोनों प्रकार के दंड दिए जाते है। संथाल जनजाति में सबसे कठोर सजा बिटलाहा को माना जाता है यौन अपराध सबसे अधिक निंदनीय और दंडनीय माना जाता है जब कोई महिला या पुरुष यौन अपराध का दोषी पाया जाता है तो उसे पुरे समाज से बाहर निकाल दिया जाता है। परन्तु बिटलाहा की सजा को समाप्त करने का भी प्रावधान है दोषी को क्षमा याचना करते हुए एक बड़ा जातीय भोज देना पड़ता है। अब संथाल समुदाय में बिटलाहा सजा नहीं के बराबर दी जाती है।
आर्थिक जीवन :-
संथाल जनजातियों का जीवन आर्थिक दृस्टि से अभाव ग्रस्त रहा है पहले वे शिकार पर निर्भर रहा करते थे जंगल से निर्भरता कुछ कम होने के बाद वे पूरी तरह कृषि पर निर्भर है जो इनकी आजीविका का मुख्य आधार है। धन इनकी मुख्य फसल है इनका भोजन साधारण होता है।कृषि के अलावा ये पशुपालन भी करते है। संथालो में गोदना गोदने का प्रचलन पाया जाता है पुरुष के बाये हाथ में सिक्का का चिन्ह होता है बिना सिक्का चिन्ह वाले पुरुष से समाज में कोई लड़की विवाह नहीं करना चाहती है। संथाल समाज में अनेक प्रकार के विवाहो का प्रचलन है जैसे कीरिंग (बहु ),बापला ,इतुत ,निर्बोलोक ,टुनकी दीपिल बापला ,घर की जमाई ,सेवा विवाह ,सांगा आदि।
धार्मिक जीवन :-
संथाल जनजातियों में प्रधान देवता "सिंगबोंगा या ठाकुर" को माना जाता है इनका दूसरा प्रधान देवता "मरांग बुरु" है। संथालो का ग्राम देवता "जाहेर ऐरा" ,धार्मिक प्रधान "नायके" और गृह देवता "ओड़ाक बोंगा" को कहा जाता है। संथाल गांव के बाहर एक किनारे सखुआ या महुआ पेड़ के झुरमुट के बीच जाहेर थान होता है जहा जाहेर ऐरा के अतिरिक्त संथालो के प्रमुख देवी- देवता निवास करते है।
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2. उरांव जनजाति :-
- उरांव जनजाति झारखण्ड की दूसरी सबसे बड़ी जनसँख्या वाली जनजाति है।
- उरांव शब्द गैर आदिवासियों द्वारा दिया गया है।
- ये मुख्य रूप से रांची ,पलामू ,लातेहार ,सिंघभूम और संथाल परगना में निवास करते है। बहुत से उरांव विभिन्न कारणों से अपने पारम्परिक वास स्थान का त्याग कर असम और बंगाल चले गए है।
- उराव जनजाति स्वयं को "कुरुख" कहते है और जंगल साफ करके खेत बनाने वाले भुईहर कहलाते है।
- उरांव भाषा और प्रजाति दोनों दृस्टि से द्रविड़ जाति से सम्बंधित है।
- इनकी त्वचा का रंग गहरा भूरा ,बाल काले ,सिर लंबा और कद छोटा होता है।
- उरांव जनजाति के 14 प्रमुख गोत्र है जो लकड़ा ,रुड़ा ,गारी ,तिर्की ,किस्पोट्टा ,टोप्पो ,एक्का ,लिंडा ,मिंज ,कुजूर ,बांडी ,बेक ,खलको और केरकेट्टा है।
सामाजिक जीवन :-
उरांव जनजाति सुव्यवस्थित गांव में रहता है उरांव जनजाति में गांव का मुखिया महतो होता है गांव में सभी पूजा पाठ सम्बन्धी कार्य को महतो पूरा करता है। उरांव जनजाति में युवा गृह को घुमकुरिया कहा जाता है। उरांव जनजाति में गोदना गोदने का प्रचलन पाया जाता है। उरांव जनजाति में समगोत्रीय विवाह पर प्रतिबंध है इनमे विवाह मुख्यतः बर्हिगोत्र के आधार पर होता है। उरांव जनजाति में आम तौर पर एक विवाह की प्रथा है किन्तु विशेष परिस्थिति में पति को दूसरा विवाह करने का छूट है। उरांव समाज में बाल विवाह की प्रथा नहीं है।
आर्थिक जीवन :-
उरांव जनजातियों का जीवन आर्थिक दृस्टि से अभाव ग्रस्त रहा है पहले वे शिकार पर निर्भर रहा करते थे जंगल से निर्भरता कुछ कम होने के बाद वे पूरी तरह कृषि पर निर्भर है जो इनकी आजीविका का मुख्य आधार है। धन इनकी मुख्य फसल है इनका भोजन साधारण होता है। उरांव जनजाति कृषि के रूप में मोठे चावल ,बाजरा ,दलहन ,तिलहन आदि की खेती करते है। कृषि के अलावा ये पशुपालन भी करते है।
धार्मिक जीवन :-
उरांव जनजाति का सर्वप्रमुख देवता "धर्मेश या धर्मी" है जिन्हे जीवन तथा प्रकाश देने में सूर्य के बराबर माना जाता है। उरांव का पहाड़ देवता मरांग बुरु ,ग्राम देवता ठाकुर देव ,सीमांत देवता डीहवार और कुल देवता पूर्व जात्मा है। "पाहन" उराव गांव का धार्मिक प्रधान होता है। पुजार, पाहन का सहयोगी होता है। सरना उरांव का मुख्य पूजा स्थल है। उरांव के पूर्वजो की आत्मा का निवास स्थान सासन कहलाता है।
3. मुंडा जनजाति :-
- मुंडा जनजाति झारखण्ड की तीसरी सर्वाधिक जनसँख्या वाली जनजाति है जो स्वयं को "कोल" कहती है।
- मुंडा जनजाति अपनी मुंडारी भाषा को "होडो जगर" कहते है।
- मुंडा झारखण्ड में कोलेरियन समूह की एक सशक्त और शक्तिशाली जनजाति है।
- प्रजाति दृस्टि से मुंडा को प्रोटो ऑस्ट्रोलॉइड श्रेणी में रखा जाता है।
- इनकी भाषा मुंडारी ऑस्ट्रो एशियाटिक भाषा परिवार के अंतर्गत आती है ये मुख्य रूप से रांची ,पलामू ,लातेहार ,सिंघभूम और संथाल परगना में निवास करते है।
- मुंडा समुदाय झारखण्ड के मूल निवासी है और झारखण्ड में इनका प्रवेश 600 ईसा पूर्व में हुआ था।
- मुंडाओं के अनेक गोत्र है जो आईड ,कंडुलना ,टूटी ,डुंगडुंग ,टोपनो ,बागे ,बोदरा ,सुरीन आदि मुंडा जनजाति की प्रमुख गोत्र है।
सामाजिक जीवन :-
मुंडा गांव के मुखिया को "हातुमुण्डा या मुंडा" कहा जाता है। मुंडा जनजाति में युवा गृह को "गीतिहोड़ा" कहा जाता है तथा विवाह को "अरंडी " कहा जाता है। मुंडा समुदाय में वधु को दिए जाने वाले वधु मूल्य को "कुरी गोतोंग टाका" कहा जाता है।
आर्थिक जीवन :-
मुंडा जनजातियों का जीवन आर्थिक दृस्टि से अभाव ग्रस्त रहा है पहले वे शिकार पर निर्भर रहा करते थे जंगल से निर्भरता कुछ कम होने के बाद वे पूरी तरह कृषि पर निर्भर है जो इनकी आजीविका का मुख्य आधार है। धन इनकी मुख्य फसल है इनका भोजन साधारण होता है। मुंडा जनजाति कृषि के रूप में मोठे चावल ,बाजरा ,दलहन ,तिलहन आदि की खेती करते है। कृषि के अलावा ये पशुपालन भी करते है।
धार्मिक जीवन :-
मुंडाओं का सर्वप्रमुख देवता "सिंगबोंगा" है जो सूर्य के समान माना जाता है। मुंडाओं के अन्य प्रमुख देवी देवता है हातु बोंगा उनका ग्राम देवता ,देशाउली उनकी ग्राम देवी ,ओड़ा बोंगा मुंडाओं का कुल देवता ,इकिर बोंगा मुंडाओं का जल देवता आदि। पाहन मुंडा गांव का धार्मिक प्रधान होता है। पुजार या पनभरा पाहन का सहयोगी होता है।
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4. हो जनजाति :-
- हो जनजाति झारखण्ड की चौथी सर्वाधिक जनसँख्या वाली जनजाति है जो झारखण्ड के सिंघभूम ,सरायकेला आदि जिलों में निवास कराती है।
- प्रजाति दृस्टि से मुंडा को प्रोटो ऑस्ट्रोलॉइड श्रेणी में रखा जाता है।
- हो जनजातियों की शारीरिक बनावट झारखण्ड की अन्य जनजातियों से थोड़ी भिन्न होती है।
- इनकी भाषा "हो " मुंडारी और संथाली से काफी मिलती जुलती है वर्तमान समय में इनकी लिपि बार्डचिति है।
सामाजिक जीवन :-
हो जनजाति में गांव का मुखिया मुंडा होता है जिसके सहयोगी को डाकुआ कहा जाता है। हो जनजाति अपने युवा गृह का गोतीओरा कहते है और विवाह को अंडी या ओपोर्तिपी कहते है हो समाज में वधु मूल्य को गोनोंग या पान कहा जाता है।
आर्थिक जीवन :-
हो जनजातियों का जीवन आर्थिक दृस्टि से अभाव ग्रस्त रहा है पहले वे शिकार पर निर्भर रहा करते थे जंगल से निर्भरता कुछ कम होने के बाद वे पूरी तरह कृषि पर निर्भर है जो इनकी आजीविका का मुख्य आधार है। धन इनकी मुख्य फसल है इनका भोजन साधारण होता है। हो जनजाति कृषि के रूप में मोठे चावल ,बाजरा ,दलहन ,तिलहन आदि की खेती करते है। कृषि के अलावा ये पशुपालन भी करते है।
धार्मिक जीवन :-
हो जनजातियों का सर्वप्रमुख देवता "सिंगबोंगा" है। अन्य प्रमुख देवी देवता है - मरांग बुरु उनका पहाड़ देवता ,पाहुई बोंगा उनका ग्राम देवता और देउरी उनका धार्मिक प्रधान है।
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