झारखण्ड राज्य का गठन :-
वर्ष 1912 में झारखण्ड (छोटानागपुर) बंगाल से अलग होकर बिहार में शामिल हुआ। जिसके बाद अलग झारखण्ड राज्य की मांग तेज हो गयी। अलग झारखंग राज्य के विरोध में बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने यह तर्क दिया कि वित्तीय दृस्टि से छोटनागपुर (झारखण्ड) घाटे में रहेगा यही इसके अलग राज्य बनने के मार्ग में बाधक है परन्तु यह सत्य नहीं था और सच्चिदानंद सिन्हा ने भी इसे खोखली दलील कहा।
झारखण्ड पहले से ही खनिज संसाधन से युक्त क्षेत्र रहा है जिसे बिहार सरकार केवल अपना खनिज संसाधन पूरा करने की दृस्टि से देखती थी और संसाधनों का दोहन कर यहाँ के आदिवासियो को मूलभूत जरूरतों से वंचित रखती थी। सन 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना हुई और इसके सामने भी अलग झारखण्ड राज्य की मांग रखी गयी। राज्य पुनर्गठन आयोग ने अलग झारखण्ड राज्य की मांग को अस्वीकार कर दिया और यह तर्क दिया की दक्षिण बिहार के अधिकतर लोग इस विभाजन की पक्ष में नहीं है और इस क्षेत्र के राजनितिक दल भी इस विभाजन की विरोध में है परन्तु ये सभी तर्क पूरी तरह खोखले थे।
विभाजन से पहले बिहार राज्य :-
अलग झारखण्ड राज्य की मांग के लिए कई स्वतंत्र पार्टियों का गठन हुआ। जैसे -" छोटानागपुर उन्नति संघ 1915- जिसने साइमन कमीशन से मिलकर अलग झारखण्ड राज्य की मांग को उठाया और साथ ही विभिन्न राजनीतिक दल को इसमें शामिल करने का प्रयास किया ,आदिवासी महासभा 1930- इस संगठन ने सभी आदिवासियों को एकजूट करने का काम किया। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा 1972- इस समय झारखण्ड की राजनीति की पटल पर एक नए दल का उदय हुआ जिसके स्थापना शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो ने की। सन 1978 को शिबू सोरेन और एम के राय ने बिहार की राजधानी पटना में एक विशाल रैली का आयोजन किया और बिहार सरकार को अलग झारखण्ड राज्य के आंदोलन की ताकत का अंदाजा हो गया। आगे चल कर शिबू सोरेन लोकसभा सदस्य बन गए और अलग झारखण्ड राज्य की मांग की आशा और बढ़ बायीं इसी समय झारखण्ड मुक्ति मार्चा ने बिहार विधानसभा चुनाव में 13 सीटों पर जीत हासिल किया। सायद यही जीत झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के बीच अंतर्कलह का कारण बन गया झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का एक दल शिबू सोरेन के साथ था लेकिन दूसरा दल बाबूलाल मरांडी के साथ था। 1987 में शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी ने झारखण्ड समन्वय समिति की स्थापना की और इस समिति ने तत्कालिक राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह एक ज्ञापन सौपा जिसके अनुसार बिहार की 21 जिलों को अलग करके अलग झारखण्ड राज्य की मांग की गयी।
काफी वर्षो से अलग झारखण्ड राज्य की मांग को देखते हुए तत्कालिक प्रधानमंत्री VP सिंह ने एक 24 सदस्यीय जाँच समिति बनाई। केंद्र की इस समिति में झारखण्ड आंदोलन के 16 प्रतिनिधि भी शामिल थे। इस समिति को 4 राज्यों बिहार, बंगाल, ओडिशा व मध्य प्रदेश का दौरा करने के लिए भेजा। जिसके बाद समिति ने वर्ष 1990 को अपनी रिपोर्ट संसद को सौप दी. इसी समय लालू प्रसाद यादव बिहार के नए मुख्यमंत्री बने। लालू प्रसाद यादव ने जब प्रदेश में अराजकता और अस्थिरता देखी तो झारखण्ड के मुद्दे पर कोई काम नहीं किया। वैसे भी लालू प्रसाद यादव बिहार विभाजन के कड़े विरोधियो में से एक थे। जब केंद्र में BJP की सरकार स्थापित हुई तो उसने अलग झारखण्ड राज्य का समर्थन किया और संसद द्वारा अलग झारखण्ड राज्य विधेयक को मंजूरी मिल गयी। लेकिन उनकी इच्छा थी की उसका नाम "वनांचल " हो। इसका कारण यह था की झारखण्ड के नाम से चुनावी लाभ झारखण्ड नाम धारी दलों को मिलने की आशंका थी। 9 अगस्त 1995 को झारखण्ड स्वायत्तशासी परिषद की स्थापना हुई जिसके अध्यक्ष शिबू सोरेन और उपाध्यक्ष सूरज मंडल बने। 1998 में अलग झारखण्ड राज्य विधेयक बिहार विधानसभा में रखा गया। इस विधेयक के पक्ष में कुल 107 मत पड़े और इसके विरोध में 181 मत पड़े और इस तरह यह विधेयक बिहार विधानसभा द्वारा अस्वीकार कर दिया गया। सन 1999 में केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनी और इस बार राजनीतिक परिस्थितिया अनुकूल थी। बिहार में कांग्रेस का समर्थन प्राप्त करके लालू प्रसाद यादव ने सरकार बनाई थी। कांग्रेस अलग झारखण्ड राज्य विरोधी थी मगर अब एन डी ए की चुनौती सामने थी इस कारण कांग्रेस ने अलग झारखण्ड राज्य का समर्थन किया जिसे लालू प्रसाद की सरकार को मानना पड़ा क्योंकि बिना कांग्रेस के समर्थन के बिहार में उनकी सरकार नहीं बनने वाली थी।
फलतः उन्होंने 18 जिलों को अलग करके अलग झारखण्ड राज्य के प्रस्ताव को 25 अप्रैल 2000 को बिहार विधानसभा से पारित कर दिया और 15 नवम्बर 2000 (बिरसा मुंडा के जन्म दिन पर) को झारखण्ड भारत का 28 वा राज्य बन गया. जिसकी राजधानी रांची और उपराजधानी दुमका को बनाया गया झारखण्ड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और पहले राज्यपाल प्रभात कुमार बने. वर्तमान झारखण्ड में कुल 24 जिले है।
झारखण्ड के कुल 24 जिले हैं :-
1. गढ़वा जिला 2. गिरिडीह जिला 3. दुमका जिला 4. सिमडेगा जिला
5. पलामू जिला 6. धनबाद जिला 7. गोड्डा जिला 8. रांची जिला
9. लातेहार जिला 10. बोकारो जिला 11. साहिबगंज जिला 12. खूंटी जिला
13. चतरा जिला 14. रामगढ़ जिला 15. पाकुड़ जिला 16. पूर्वी सिंघभूम जिला
17. हज़ारीबाग जिला 18. देवघर जिला 19. लोहरदगा जिला 20. पश्चिमी सिंघभूम जिला
21. कोडरमा जिला 22. जामताड़ा जिला 23. गुमला जिला 24. सरायकेला खरसावां
झारखण्ड में कुल 42 अनुमंडल हैं :-
1. गड़वा अनुमंडल 22. जामताड़ा अनुमंडल
2. नगर उटारी अनुमंडल 23. दुमका अनुमंडल
3. रंका अनुमंडल 24. गोड्डा अनुमंडल
4. मेदिनी नगर अनुमंडल 25. साहेबगंज अनुमंडल
5. हुसैनाबाद अनुमंडल 26. राजमहल अनुमंडल
6. छतरपुर अनुमंडल 27. पाकुड़ अनुमंडल
7. लातेहार अनुमंडल 28. लोहरदगा अनुमंडल
8. चतरा अनुमंडल 29. गुमला अनुमंडल
9. सिमरिया अनुमंडल 30. बसिया अनुमंडल
10. हज़ारीबाग अनुमंडल 31. चैनपुर अनुमंडल
11. बरही अनुमंडल 32. सिमडेगा अनुमंडल
12. कोडरमा अनुमंडल 33. खूंटी अनुमंडल
13. गिरिडीह अनुमंडल 34. रांची अनुमंडल
14. खोरी महुआ अनुमंडल 35. बुंडू अनुमंडल
15. डुमरी अनुमंडल 36. घाटशिला अनुमंडल
16. धनबाद अनुमंडल 37. ढालभूम अनुमंडल
17. चास अनुमंडल 38. पश्चिमी सिंघभूम अनुमंडल
18. बेरमो अनुमंडल 39. चक्रधरपुर अनुमंडल
19. रामगढ़ अनुमंडल 40. जगन्नाथपुर अनुमंडल
20. देवघर अनुमंडल 41. सरायकेला अनुमंडल
21. मधुपुर अनुमंडल 42. चांडिल अनुमंडल
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