1. महेंद्र सिंह धोनी
आज के समय में महेंद्र सिंह धोनी एक जाना पहचाना नाम है जो भारत समेत पुरे विश्व में चर्चित व्यक्तियों की श्रेणी में शामिल है। महेंद्र सिंह धोनी भारतीय क्रिकेट के पूर्व कप्तान है जिनका जन्म 7 जुलाई 1981 को झारखण्ड के रांची में हुआ था। इनके पिता का नाम पान सिंह धोनी और माता का नाम देवकी देवी है। महेंद्र सिंह धोनी ने अपने क्रिकेटिंग करियर की शुरुआत 2004 में श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट मैच खेल कर किया। महेंद्र सिंह धोनी अपने आक्रामक बल्लेबाजी शैली और अदभूत विकेट कीपिंग के कारण काफी चर्चा में आए और इस तरह उन्होंने भारतीय क्रिकेट में अपना पहला कदम रखा। इसी वर्ष दिसंबर 2004 में धोनी ने अपना पहला एक दिवसीय मैच बांग्लादेश के विरुद्ध खेला। धोनी ने अपना पहला T20 वर्ष 2006 में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध खेला और इस तरह धोनी की क्रिकेटिंग करियर आगे बढ़ने लगा। हर मैच के साथ महेंद्र सिंह धोनी कामियाबी के शिखर पर पहुंचते गए और भारतीय क्रिकेट में कई रिकॉर्ड अपने नाम किया।
महेंद्र सिंह धोनी का वैक्तित्व -
महेंद्र सिंह धोनी का व्यक्तित्व काफी सरल और शांत स्वभाव का रहा है महेंद्र सिंह धोनी भारतीय क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर को अपना आदर्श मानते है और उनकी बल्लेबाजी से काफी प्रभावित है। धोनी को उनके शांत स्वभाव के कारण कैप्टेन कूल भी कहा जाता है जो उनके सरल वैक्तित्व को दर्शाता है।
महेंद्र सिंह धोनी की भारतीय क्रिकेट में उपलब्धि -
धोनी की कप्तानी में ही भारत ने 2007 ICC world T20 , एशिया कप 2010 , 2011 ICC क्रिकेट वर्ल्ड कप और 2013 ICC चैंपियंस ट्रॉफी जीता। यह सभी उपलब्धिया महेंद्र सिंह धोनी को भारतीय क्रिकेट का एक सफलतम कप्तान बनाती है।
महेंद्र सिंह धोनी को प्राप्त पुरस्कार -
राजीव गाँधी खेल रत्न - 2007 में T20 क्रिकेट वर्ल्ड कप और 2008 ऑस्ट्रेलिया शृंखला में सफलता के लिए धोनी को 2008 में देश के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गाँधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया।
पद्म श्री - भारतीय क्रिकेट में विशेष योगदान के लिए महेंद्र सिंह धोनी को 2009 में देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
पद्म भूषण - भारतीय क्रिकेट में विशेष योगदान के लिए महेंद्र सिंह धोनी को 2018 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
2. बिरसा मुंडा
छोटानागपुर के अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति का नेतृत्व करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की जब भी बात की जाती है तो सबसे पहला नाम बिरसा मुंडा का लिया जाता है। बिरसा मुंडा झारखण्ड के इतिहास में एक बहुत महत्वपूर्ण नाम है। बिरसा मुंडा को झारखण्ड में नायक के रूप में जाना जाता है।
बिरसा मुंडा का व्यक्तित्व -
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को खूंटी के उलिहातू गांव में हुआ था वह एक गरीब किसान सुगना मुंडा का बेटा था और माता का नाम कदमी मुंडा था। बिरसा मुंडा के बचपन का नाम दाऊद मुंडा था। बिरसा मुंडा कुछ बड़े हुए तो उन्हें उनके मामा अपने साथ ले गए और वह उन्हें एक स्कूल में दाखिला दिला दिया आगे चल कर बिरसा मुंडा ने चाईबासा स्कूल से शिक्षा हासिल की। बिरसा मुंडा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जयपाल नाग से ग्रहण किया। बिरसा मुंडा को शुरू से ही धार्मिक शिक्षा में काफी रूचि थी एक बार बिरसा मुंडा की मुलाकात ईसाई मिशनरी से हुआ जिसके बाद ईसाई मिशनरी ने ईसाई धर्म पर जोर देते हुए कहा की जो भी ईसाई धर्म को अपनाएगा उसे उसकी जमीन वापस कर दी जाएगी। यह सब सुन कर बिरसा मुंडा ने इसका विरोध किया जिसके बाद उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। स्कूल से निकाले जाने के बाद बिरसा मुंडा काम की तलाश में दूसरे गांव चले गए जहा बुनकर परिवार में उन्हें काम मिल गया इसी समय बिरसा मुंडा की मुलाकात आंनद पांडे से हुआ। बिरसा मुंडा की तरह आसपास के लोग आनंद पांडे से शिक्षा ग्रहण करने आते थे। बिरसा मुंडा दिन भर काम किया करते और शाम को आनंद पांडे से भजन ,रामायण और महाभारत की कथा सुना करते थे। बिरसा मुंडा ,आनंद पांडे के साथ लगभग तीन वर्षो के लिए जुड़े रहे जहा आनंद पांडे ने उन्हें पारम्परिक औषधियो की शिक्षा प्रदान की ताकि वे अपने आदिवासी लोगो की मदद कर सके।
नए धर्म का प्रतिपादन -
बिरसा मुंडा ने नशा और बलि जैसे कुरीतियों का जमकर विरोध किया। समाज की इन कुरीतियों को दूर करने के लिए ही बिरसा मुंडा ने सिंगबोंगा और बिरसाइत धर्म का प्रतिपादन किया। इन धर्मो द्वारा बिरसा मुंडा आदिवासी लोगो को नशा न करने और पशुओ की बलि न देने के लिए शिक्षित करने लगे।
बिरसा मुंडा की गिरफ़्तारी -
वर्ष 1895 में जी आर के मेयर्स के नेतृत्व में बिरसा मुंडा को पहली बार गिरफ्तार करके जेल भेजा गया। लगभग दो साल छः माह जेल में रखने के बाद बिरसा मुंडा को जेल से रिहा कर दिया गया।
बिरसा मुंडा की मृत्यु -
अंग्रेजो ने बिरसा को एक बार फिरअंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया और बिरसा मुंडा को रांची जेल में बंद कर दिया। रांची जेल में सजा काटने के दौरान 9 जून 1900 को रांची जेल में बिरसा मुंडा की हैजे से मृत्यु हो गया परन्तु कहा यह भी जाता है की रांची जेल में अंग्रेजो ने बिरसा मुंडा को जहर देकर मार दिया।
3. लांस नायक अलबर्ट एक्का -
लांस नायक अलबर्ट एक्का का जन्म 27 दिसंबर 1942 को गुमला जिले में जरी गांव (ब्लॉक - डुमरी ) में हुआ था। उनके पिता का नाम जूलियस एक्का और माता का नाम मरियम एक्का था। अलबर्ट एक्का ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पतराटोली स्कूल से पास की और अपनी माध्यमिक शिक्षा भिखमपुर स्कूल से पास की। लांस नायक अलबर्ट एक्का ने वर्ष 1962 में भारत - चीन युद्ध में अपने शौर्य का प्रदर्शन किया जिसके बाद उन्हें सेना में लांस नायक बनाया गया अलबर्ट एक्का थल सेना में ब्रिगेड ऑफ द गार्डस के लांस नायक के पद पर थे। वर्ष 1971 के भारत - पाकिस्तान युद्ध में लांस नायक अलबर्ट एक्का अपने शौर्य और वीरता का परिचय देते हुए बुरी तरह घायल हो गए। घायल होने के बावजूद उन्होंने अपने लोगो की रक्षा की। लांस नायक अलबर्ट एक्का इस अभियान के समय काफी घायल हो गये थे और 3 दिसम्बर 1971 में इस दुनिया से विदा हो गए । भारत सरकार ने इनके बलिदान को देखते हुए मरणोपरांत सैनिकों को दिये जाने वाले सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया।
4. जयपाल सिंह मुंडा :-
जयपाल सिंह मुंडा का जन्म 3 जनवरी 1903 को झारखण्ड के राँची जिले के पहान टोली गांव में एक मुंडा परिवार में हुआ था। जयपाल सिंह मुंडा शुरू से ही प्रतिभाशाली थे। उन्हें शुरू से ही पढ़ने और खेलने में काफी रूचि थी। जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासी नेता बिरसा मुंडा को अपना प्रेरणा स्रोत बनाया।
जयपाल सिंह की असाधारण प्रतिभा के कारण ही उनका चयन भारतीय सिविल सेवा में हो गया था। खेल में भी असाधारण प्रतिभा के कारण वर्ष 1928 में जयपाल सिंह का चयन भारतीय हॉकी टीम के कप्तान के रूप में हुई। बीच में ही भारतीय सिविल सेवा का प्रशिक्षण छोड़ के नीदरलैंड में एम्स्टर्डम ओलम्पिक में हॉकी टीम में शामिल होने चले गए और भारतीय टीम ने वहां स्वर्ण पदक अपने नाम किया।
वतन वापस लौटने के बाद जयपाल सिंह मुंडा राजनीति से जुड़ गए और देश में आदिवासियो की दुर्दशा देख कर उनके अधिकारों की मांग करना शुरू कर दिया। अपने इन्ही प्रयाशो को आगे बढ़ने के लिए जयपाल सिंह ने वर्ष 1938 में आदिवासी महासभा की स्थापना की और आगे चल कर झारखण्ड पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष बने। जयपाल सिंह मुंडा के जीवन में सबसे बेहतरीन समय तब आया जब उन्होंने संविधान सभा में देश की आदिवासियों के अधिकारों को सकारत्मक ढंग से प्रस्तुत किया।
जयपाल सिंह मुंडा की मृत्यु 20 मार्च 1970 में 67 वर्ष की आयु में नई दिल्ली में हुई।
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